स्वास्थ्य के लिए अमृत है राय का तेल, आइए जानते हैं इसके चमत्कारिक गुण

राई के विभिन्न नाम:

 हिन्दी             -   राई

संस्कृत          -    राजिका, आसुरी, तिछड़गंध

बंगला           -    राई, सरिशा

गुजराती        -    राई

मराठी          -     मोहरी 

पंजाबी         -     ओहर

सिंध             -     अहरी 

अंग्रेजी         -      इंडियन मस्टर्ड (Indian mustard)

लेटिन           -     ब्रासिका जांशिया (Brassica Juncea)

यह वनस्पति जगत के ब्रासीकेसी कुल में आता है।

समस्त भारत वर्ष में राई पाई जाती है उत्तर भारत एवं दक्षिण भारत में इसकी खेती बहुतयात से की जाती है यह शाकीय पौधा 1 वर्षीय होता है इसका कांड कोमल होता है संपूर्ण पौधा लगभग सरसों के पौधे के समान दिखाई देता है इसकी जड़ मुशला प्रकार की होती है पत्ते खुरदुरे हरा  किंतु सरसों की पत्तियों से विपरीत कांड के साथ मिले हुए अथवा संयुक्त नहीं होते हैं पत्तों के किनारे अनियमित कटान वाले होते हैं पुष्प हल्के पीले रंग के होते हैं एवं मंजरियों में होते हैं फल डंठल युक्त तथा फली के रूप में होते हैं फलों में 10 से 20 गोल बेगनी भूरे रंग के बीज होते हैं इन्हीं बीजों में तेल होता है या सरसों के बीज की तुलना में छोटे होते हैं इन्हें बीजों से संपीडन के द्वारा तेल प्राप्त किया जा सकता है।

बालों के लिए राई के फायदे राई खाने के फायदे और नुकसान राई का पानी पीने के फायदे राई तेल के फायदे राई खाने के नुकसान राई की तासीर कैसी होती है

आयुर्वेद के अनुसार राई का तेल वीर्य वात कफ नाशक शोथ हर स्फोट जनन वेदना नाशक दीपन पाचन क्रीमघन प्लीहा वृद्धिनाशक अधिक मात्रा में सेवन करने पर वमन प्रेरक तथा श्वेत जनक होता है इसके अधिक सेवन से तासीर त्रिस्ना दाह तथा पेट्टिक लक्षण उत्पन्न होते हैं इसके दुष्प्रभाव को त्वरित निवारण मीठे तथा स्निग्ध पदार्थ का सेवन करना चाहिए।

राई के तेल का औषधि महत्व -

औषधि रूप में राई का तेल बहुत अधिक लाभदायक पाया गया है इसका प्रयोग चोट सूजन आदी के प्रभाव को दूर करने के लिए मालिश के रूप में भी किया जाता है वैसे तो राई के तेल के अनेक लाभ हैं किंतु यहां कुछ विशेष लाभों के बारे में बताया जा रहा है ~

शोथ हो जाने पर:

 शोथ हो जाने की स्थिति में संबंधित स्थान पर राई का तेल हल्के से लगाने से लाभ होता है तेल लगाने के बाद धीरे-धीरे मालिश भी की जा सकती है इससे तुरंत लाभ दिखाई देने लगता है।

पेट में कीड़े पड़ जाने पर: 

पेट में किसी भी प्रकार के कीड़े पड़ जाने पर 4 से 5 बूंद राई का तेल शहद में मिलाकर चाटना चाहिए इससे पेट के कीड़े मल के साथ बाहर निकल जाते हैं प्रयोग सुबह तथा रात्रि के समय दो से तीन दिनों तक करने से पर्याप्त लाभ होता है।

प्लीहा वृद्धि :

प्लीहा वृद्धि हो जाने पर छाती में पसलियों के नीचे बाएं तरफ दर्द होता है कमजोरी तथा थकान रहती है पलीहा वृद्धि होने की स्थिति में थोड़े से राई के तेल को बट वृक्ष के पत्ते पर लगाकर उसे थोड़ा गर्म कर ले इसके बाद किसी प्रकार से दर्द वाले स्थान पर बांध लें तुरंत आराम आएगा अगर इसके ऊपर नमक का सेक करें तो अधिक लाभ की प्राप्ति होगी इसके लिए पिसा हुआ कुछ नमक लेकर उसे हल्का गर्म कर ले इसके बाद इस नमक को सूती कपड़े पर डालकर ढीली पोटली बनाकर हल्के हाथों से सेक करें चमत्कारी प्रभाव आएगा।

अपच होने पर:

राई के तेल के दो तीन बूंद की मात्रा बताशे में डालकर 2 से 5 दिन तक लेनी चाहिए ऊपर से थोड़ा सा जल पी लेना चाहिए आधुनिक युग में बाजारों में खाली कैप्सूल मिलते हैं ऐसे दो नंबर के कैप्सूल में तेल की उपरोक्त मात्रा डालकर कैप्सूल बंद करके जल के साथ भी निगला जा सकता है।

पंजों के दुखने पर :

कई बार अधिक चलने से अथवा अधिक देर खड़े रहकर काम करने से पांव के पंजों में दर्द होने लगता है इस दर्द से मुक्ति पाने के लिए आप यह उपाय करें एक बर्तन में दो से तीन लीटर के लगभग पानी डालकर हल्का गर्म कर लें बाद में बर्तन को आग से उतार कर एक चौड़े पात्र में गर्म पानी डाल दें पात्र इतना चौड़ा हो कि आप अपने दोनों पांव के पंजे उसमें डाल सके इस हलके गर्म पानी में पांच मिली राई का तेल डाल दें अब आप एक कुर्सी पर बैठ जाएं और नीचे गर्म पानी का बर्तन रखकर उसमें पांव को रख दें पानी इतना अवश्य होगी आपकी टखने तक उसमें डूब जाए कुछ देर बाद ही आपको आराम प्राप्त होता अनुभव होगा।

जोड़ो के दर्द :

 जोड़ों के दर्द को दूर करने के लिए आप यह उपाय कर सकते हैं 100 मिली राई का तेल लेकर एक बर्तन में डालकर हल्की आंच पर रख दें इसमें 8 10 कलियां लहसुन की काटकर डाल दे इस तेल को तब तक आंच पर रखें जब तक की लहसुन पूरी तरह जलकर काला ना पड़ जाए अर्थात लहसुन का पूरा रस गर्म तेल में जल जाए अब बर्तन को नीचे उतारकर ठंडा होने में बाद में इसे छानकर कांच की सीसी में डालकर सुरक्षित रख ले इस तेल से जोड़ों की मालिश करने से उनके दर्द में कमी आती है।

राई के तेल का विशेष प्रयोग -

सर्दी हो जाने पर अथवा सर्दी होने की प्रारंभिक अवस्था में नाक में सुरसुरी चलने लगती है ऐसी स्थिति में दो तीन बूंद राई के तेल को शक्कर के एक चम्मच बुरे में मिलाकर फांकलें ऊपर से चाय पी ले ऐसा करते ही सुरसुरी बंद हो जाती है सुबह शाम इस प्रयोग को 1 से 2 दिन तक करने से सर्दी से छुटकारा मिलता है वैसे जिन लोगों की प्राकृतिक सर्दी हो उन्हें सर्दी के मौसम में 4 से 6 दिन में एक बार दो से तीन बूंद राई का तेल अवश्य ही लेना चाहिए शक्कर के साथ अथवा शहद के साथ यह तेल ले सकते हैं।

राई के तेल के चमत्कारिक प्रयोग:

राई के तेल के द्वारा अनेक उपाय करके समस्याओं तथा कष्टों से मुक्ति प्राप्त की जा सकती है विशेष रूप से शनि तथा राहु के कष्टों को कम करने के लिए राई के तेल द्वारा किए गए उपाय अपना चमत्कारी प्रभाव तत्काल देता है कुछ उपाय इस प्रकार हैं -

1. जो लोग शनि से पीड़ित हो अथवा अर्थात जिन लोगों की पत्रिका में शनि नीच रासी का शत्रु के घर का अथवा शत्रु के घर में विराजित हो अथवा जो शनि की साढ़ेसाती अथवा शनि के ढय्या के प्रभाव में हो ऐसे लोगों को प्रत्येक शनिवार पीपल के वृक्ष के नीचे आते आटा के बनी हुई दीपक में राई का तेल भरकर जलाना चाहिए यह प्रयोग संध्या के समय करना विशेष लाभदायक रहता है इस प्रयोग को करने से वह शनि की पीड़ा से मुक्त होते हैं प्रयोग कम से कम 11 शनिवार करें।

2. राहु ग्रह से पीड़ित व्यक्ति को शनिवार के दिन राई के तेल की अल्प मात्रा लेकर चंदन के वृक्ष पर चढ़ाना चाहिए प्रयोग कम से कम 10 शनिवार को करना चाहिए तेल सुबह के समय चढ़ाना चाहिए।

3. जिस व्यक्ति को चोरों का भय हो अथवा जिनके घर प्रया: चोरी होती हो तो ऐसे व्यक्तियों को यह प्रयोग अवश्य करना चाहिए इसके लिए राई के थोड़े से तेल में केवड़े का इत्र मिला लें इस मिश्रण में थोड़ा सिंदूर डालकर अच्छे से मिला ले इस सिंदूर से घर के मुख्य द्वार के दोनों और एक-एक स्वास्तिक बना ले ऐसा करने से चोरों की समस्या दूर होती है इसके अलावा अगर कुछ अनिष्ट बार-बार दुख देते हैं तो वह भी दूर होने लग जाएंगे।

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