दालचीनी तेल का उपयोग: आपके स्वास्थ्य के लिए अद्भुत लाभ

दालचीनी के विभिन्न नाम

हिन्दी            -      दालचीनी 

संस्कृत          -      स्वादि, तंतवक्क, दारूसिता

बंगला            -     दारूचिनी 

गुजराती        -      पाटलितज 

मराठी           -      दालचीनी

तेलगु            -      डाल चीनी

अरबी           -       सालिखा

फारसी         -       दारचीनी

अंग्रेजी         -        Cinnamon Bark 

लैटिन          -        सिन्नमोमम झीलेनिक (Cinnamomum Zeylanica)

यह वनस्पति जगत के लॉरेंसी कुल का सदस्य है।

दालचीनी श्रीलंका का आदिवासी वृक्ष है मुख्यताः यह सिंहल, मालाबार, कोचीन, चीन, सुमात्रा, जावा इत्यादि देश में अधिक होता है भारत में भी इसे पैदा किया जाता है इसके वृक्ष मध्यम कद के सदा हरित होते हैं इसकी टहनियां चपटी एवं चिकनी होती है इसके पत्ते तमाल पत्र के तरह होते हैं पत्तों में विशिष्ट खुशबू होती है वृक्ष के अग्रभाग में स्थित वृतांत पर सफेद रंग के फूल आते हैं फूलों में गुलाब से मिलती-जुलती गंध आती है फल करोदे के समान कुछ सफेद तथा लाल होते हैं इस वृक्ष की पतली त्वचा छाल को दालचीनी कहा जाता है इसी जाति के जो बड़े पेड़ होते हैं उनकी चल मोटी होती है उन्हें तेज कहते हैं यह उतनी सुगंधित नहीं होती है इसकी छाल के आसवन से तेल प्राप्त किया जाता है जिसे दालचीनी का तेल कहते हैं। 

दालचीनी के फायदे पुरुषों के लिए दालचीनी के तेल के फायदे दालचीनी का तेल और जैतून का तेल दालचीनी का तेल बनाने की विधि दालचीनी तेल की मालिश

दालचीनी के तेल में मुख्य रूप से सीनेमिक एल्डेहाइड (Cinnamic Aldehyde) होता है इसके अतिरिक्त यूजेनाल तथा कुछ अन्य रसायन अलग मात्रा में पाए जाते हैं ताजी अवस्था में यह तेल हल्के पीले रंग का होता है जो कुछ समय तक रखा रहने पर लालिमा लिए हुए भूरे रंग का हो जाता है।

आयुर्वेदनुसार दालचीनी का तेल नाडी प्रतान तथा नर्वस में उत्तेजना प्रदान करता है साथ ही उदर के लिए लाभदायक है की जिह्वा स्तंभन को समाप्त करने वाला, आंतरिक शूल का समन करने वाला, वमन को रोकने वाला तथा एंटीसेप्टिक होता है अधिक मात्रा में लेने पर यह विश जैसा कार्य करता है।

दालचीनी के तेल का औषधीय महत्व -

उत्तेजना प्राप्त करने हेतु:

250 मिली गर्म दूध में दो बूंद दालचीनी का तेल मिलाकर लेने से नर्वस उत्तेजना होती है यह उत्तेजना रति आनंद की वृद्धि करती है किंतु इसे नियमित रूप से प्रयोग नहीं करना चाहिए नियमित प्रयोगार्थ इसकी छाल को दो चुटकी चूर्ण को दूध में उबालकर ले सकते हैं इससे स्तंभन तो होती ही है लिंग का दृढ करण भी होता है।

अंतरशूल से मुक्ति हेतु:

अंतराशूल होने पर एक बतासे में दो बूंद दालचीनी का तेल लेकर ऊपर से पानी पीले इस प्रयोग को दो से तीन बार करने से ही उत्तम लाभ होता है।

वमन की स्थिति बनने पर:

दालचीनी के तेल की दो बूंद की मात्रा जल में डालकर पीने से वमन रुक जाती है।

वर्ण पर:

वर्ण पर एक रूई के फोहे की सहायता से दालचीनी का तेल लगाने से वह ठीक होने लगते हैं।

दालचीनी के तेल का विशेष प्रयोग: 

कई लोगों की जुबान स्तंभित हो जाती है जिसके कारण वह स्पष्ट बोल नहीं पाते अथवा उन्हें बोलते समय कठिनाई महसूस होती है ऐसे लोगों को दालचीनी के तेल की दो बूंद अपनी जीभ पर रखकर उसे फैला लेना चाहिए इस प्रयोग से जुबान पतली हो जाती है तथा उसका स्तंभ समाप्त हो जाता है तेल उपलब्ध न हो -  नहीं हो पाने की स्थिति में दालचीनी की छाल को भी उक्त लाभ प्राप्त किया जा सकता है।

दालचीनी के तेल का चमत्कारी प्रयोग:

जिस लड़की की शादी ना हो पा रही हो उसके शेनकच्छ में एक चम्मच जैतून के तेल में एक बूंद दालचीनी का तेल मिलाकर दीपक लगे यह दीपक कम से कम 10 मिनट तक जलना चाहिए इस प्रकार से कम से कम 60 दिनों तक नित्य ही या दीपक लगे इसके बाद कन्या का शीघ्र विवाह का मार्ग प्रस्त होगा उसके रिश्ते की बात चलने लगेगी और ईश्वर की कृपा से विवाह भी शीघ्र हो जाएगा नित्य 10 मिनट तक कुछ दिनों तक जलाने पर सकारात्मक परिणाम होते हैं।

कोई टिप्पणी नहीं

if you have any doubts, please let me know

Blogger द्वारा संचालित.